देख मेरे ये नयन प्यासे, देखते पानी नहीं,
लब्ज़ जर्जर हैं भले ही, मांगते रोटी नहीं.!
हाथ उठते हैं ये मेरे, ढ़ोने को दुनियां के बोझ,
थरथराहट में भी तुझसे, चाहते कपड़े नहीं.!
दृश्य मनोरम हैं देखे, मैने अपने स्वप्न में,
पूरा करने को उन्हें, हमें चाहिये साथी नहीं.!
हम नहीं वह शाख जो, तूफानों से हिल जाते हैं,
छू न जबतक आसमां लें, पीछे हम तकते नहीं.!
प्यास है, एक भूख है, लगन है कागज और कलम,
पाने को अपनी ये मंज़िल, आस छोड़ेंगे नहीं.!
देख मेरे नयन प्यासे, देखते पानी नहीं,
लब्ज़ जर्जर हैं भले ही मांगते रोटी नहीं.!
By- प्रगति शर्मा (पत्रकार- जोहार जमशेदपुर)
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