हर ज़हर को पीता हूँ
बेसबब ही जीता हूँ.!
कई मोड़ आये हैं बदलते सफ़र देखे
जीतने की ख्वाहिश में हार के भंवर देखे
राह का हर एक पत्थर एक सबक सिखाता है
बेवज़ह की भटकन को रास्ता दिखाता है
बस यूँ ही सबक पढ़ता नये घाव सीता हूँ
बेसबब ही जीता हूँ.!
जब तलक ये साँसें हैं देह में रवानी है
कुछ नहीं सही फिर भी ज़िन्दगी बितानी है
काश के समझ आये किस डगर को जाना है
या उलझनों के जंगल में ख़ुद डगर बनाना है
मैं स्वयं ही अर्जुन हूँ स्वयं कृष्ण ,गीता हूँ
बेसबब ही जीता हूँ.!
कृति- अमर नाथ “ललित”