लखनऊ। उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर यूपी सरकार ने ओबीसी आयोग का गठन कर दिया है। सीएम योगी ने मंगलवार को हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही ओबीसी को आरक्षण देने के बाद ही चुनाव कराने की घोषणा की थी।
योगी सरकार द्वारा बनाए गए पिछड़ा आयोग में 5 सदस्य होंगे। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत) राम अवतार सिंह आयोग की अध्यक्षता करेंगे। आयोग में अध्यक्ष के साथ ही चार सदस्यों को नामित किया गया है। सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी शामिल हैं। आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया है जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा।
बता दें कि मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की नगर निकाय चुनाव संबंधी मसौदा अधिसूचना को रद्द करते हुए राज्य में नगर निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराने का आदेश दिया था। इसके साथ ही पीठ ने राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग को आदेश दिया कि पिछड़ा वर्ग की सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटें मानते हुए स्थानीय निकाय चुनाव को 31 जनवरी, 2023 तक संपन्न करा लिया जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार दोबारा एक डेडिकेटेड कमीशन बनाकर ट्रिपल टेस्ट का फॉर्मूला अपनाए और ओबीसी को आरक्षण दे। कोर्ट ने तो बिना ओबीसी आरक्षण के ही चुनाव कराने को कहा है। साथ ही ये भी कहा कि अगर बिना ट्रिपल टेस्ट कराए चुनाव हो तो सभी सीटों को सामान्य यानी अनारक्षित माना जाए।
सीएम योगी की प्रतिकिया
हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सरकार नगर निकाय सामान्य चुनाव के परिप्रेक्ष्य में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के नागरिकों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव सम्पन्न कराया जाएगा। अगर जरूरी हुआ तो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील भी करेगी।
विपक्ष हुआ हमलावर
हाई कोर्ट का फैसला बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए चुनौती बनकर आया। इसके बाद से विपक्षी दल योगी सरकार पर हमलावर हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के मुद्दे पर ओबीसी और दलित दोनों को साधने की कवायद कर रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि आरक्षण विरोधी बीजेपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मामले पर घड़ियाली सहानभूति दिखा रही है। आज बीजेपी ने पिछड़े वर्ग के आरक्षण का हक छीना है और कल बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों के आरक्षण को भी छीन लेगी। बीजेपी सरकार ने न सिर्फ पिछड़े वर्ग को धोखा दिया है बल्कि बाबा साहब अंबेडकर के दिए संविधान को भी खत्म करने की साजिश की है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी के गड़बड़ रवैये के कारण पिछड़ों का संवैधानिक अधिकार खत्म होने के कगार पर है। जब भी सामाजिक न्याय और आरक्षण के समर्थन में पक्ष रखने की बात आती है, भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा सामने आ जाता है। नगरीय निकाय चुनावों में आरक्षण को लेकर भाजपा सरकार के गड़बड़ रवैये से ओबीसी वर्ग का महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार खत्म होने की कगार पर है।
क्या है ट्रिपल टी फॉर्मूला
इस व्यवस्था में सरकार को एक कमिशन बनाना होता है। यह कमिशन अन्य पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देता है। रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण लागू होगा। इसमें यह देखा जाता है कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक- शैक्षणिक स्थिति क्या है? क्या वास्तव में उनको आरक्षण की जरूरत है। उनको आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं? इसके बाद यह भी देखना होता है कि यह व्यवस्था कुल आरक्षण के 50 फीसदी से ज्यादा न हो। इसी को ट्रिपल टेस्ट का नाम दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग को ट्रिपल टेस्ट के तहत आरक्षण नहीं दिया तो अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों को अनारक्षित माना जाएगा। एडवोकेट शरद पाठक ने इसी बात पर हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दी थी,जिसमें पूछा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने निकाय चुनाव में आरक्षण को लागू करने के लिए कौन सी व्यवस्था अपनाई थी।