आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी
पल-पल तेरा चेहरा पल-पल तेरी परछाई
भूली बिसरी यादे वो बाते मुलाकाते
सासों का बढ़ना घटना मन तेरी तरफ यूं बहना क्यों तो ये नई आदत सी बन आयी
आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी..!
सब कुछ है फिर भी क्यों कुछ छूटा सा लगे
नैना तेरी याद में ना सोये क्यों जगे
आज है पूरा चाँद फिर भी अधूरा सा लगे
इतनी हँसी ख़ुशी मे भी आँखो से तू क्यों बह आयी
आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी..!
सारे रंगों में भी क्यों रंग न दिखे
इतने लोगो में भी क्यों मन न लगे
जो था पाना चाहा उन सब को पा लिया
दौलत शोहरत मे भी ये इतने रंज मे भी अरे ! ये मायूसी क्यों हैं आयी
आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी..!
जिन्दगी के इस किताब में आखिरी के लम्हों में
जब सब कुछ अब खत्म हैं इस राहो में
अरे ! जन्म के इस साँझ में मुझे अपने फैसलों पर क्यों है हँसी आयी
आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी
इस शहर के शोर – शराबो में, ये क्रब सी शांति क्यों है छाई
आज पता नही तेरी याद क्यों बहुत आयी..!
By-विवेक सिंह
छात्र- देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार (उत्तराखंड)