बहराइच (नवनीत कुमार)। बहराइच जिले का मिनी पूर्वांचल कहे जाने वाले कर्तनिया क्षेत्र में छठ महापर्व का आगमन हो चुका है। छठ पूजा के दो दिन पहले से ही गांव कस्बो व बाज़ारो में खरीददारी के लिए भीड़ उमड़ने लगी है। मिहींपुरवा कस्बे में छठ से पहले जगह-जगह लगी दुकाने बाजार की रौनक बढ़ा रही हैं।
जानिये क्यों मनाया जाता है छठ
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय – छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना – कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है। नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी खाई प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है।
छठ पूजा का तीसरा दिन- षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।
छठ पूजा का चौथा यानी आखिरी दिन- सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
जानिये छठ का महत्व
छठ पर्व मुख्यमत: पूर्वी उत्तपर प्रदेश, बिहार, झारखंड का लोक पर्व है। लेकिन अब यह पूरे भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सूर्योपासना के इस महापर्व से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं कौन-कौन सी हैं ये कथाएं…
प्रियंवद और मालिनी की कहानी
पुराणों के मुताबिक राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
भगवान राम और सीता माता ने भी किया था उपवास
एक मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय पाने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के वक्त फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। यही परंपरा अब तक चली आ रही है।
सूर्य पुत्र कर्ण ने भी की थी पूजा
पौराणिक मान्यरताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
द्रौपदी ने रखा व्रत, पांडवों को मिला राजपाट
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है। छठ की महिमा के बारे में सभी को पता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि छठी मैया का वाहन बिल्ली है इसीलिए इस दिन बिल्ली को पूजनीय माना जाता है।
छठ पूजा में फीकी दिख रही प्रशासन की व्यवस्था, ग्रामीण खुद ही तैयार कर रहे घाट
तहसील मिहीपुरवा अंतर्गत कई स्थानो पर छठ पूजा हेतु नदी व तालाबो के किनारे घाटो की साफ सफाई की जा रही है। कर्तनिया स्थित कैलाशपुरी घाट, गोपिया स्थित सरयूनहर घाट समेत कई गांवो में छठ पूजा की तैयारियां की जा रही है। मिहींपुरवा के ग्राम सभा सेमरहना में छठ पूजा के लिए छठ मां के स्थान का सफाई ग्रामीणों की ओर से की जा रही है। सेमरहना में छठ मां के पूजा स्थल पर जिस स्थान पर माताएं व बहने बैठेंगी वहां पर काफी गड्ढे है जिसके वजह से निर्जल व्रत माताओं बहनों को पूजा करने में काफी परेशानियां होंगी। इसके अलावा सेमरहना से छठ मां के पूजा घाट तक आने वाले रास्ते पर भी बड़े-बड़े गड्ढे हैं जिससे पूजा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को आने जाने में काफी परेशानियां होंगी। गोपिया सरयू नहर के किनारे भी काफी गंदगी फैली हुई है।