हरिद्वार। देवभूमि उत्तराखंड के शहर हरिद्वार स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय में भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मोत्सव व शिक्षक दिवस बड़े हर्सोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम का भव्य शुभारम्भ कुलगीत एवं सामूहिक गान के साथ हुआ। इसके बाद यूनीवर्सिटी की छात्राओं ने ओडिसी गुरुवंदना व सामूहिक नृत्य की प्रस्तुति देकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। इसी क्रम में विवि के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका- ‘प्रतिभा का निर्माण’ के जरिये शिक्षा और शिक्षकों के वास्तविक उद्देश्य को समझाया। वहीं तमाम मनमोहक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से मृत्युंजय सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
सांस्कृतिक कार्यकर्मों की भव्य और सुन्दर प्रस्तुतियों के बाद विवि के कुलाधिपति डॉ प्रणव पंड्या ने सभागार में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वो अपने गुरु की बदौलत ही इस मुकाम तक पहुँच पाए हैं। गुरु बनने की प्रेरणा शिक्षक दिवस के जरिये मिलती है, जिसे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अपने जन्म दिवस के रूप में शाश्वत बना दिया। उन्होंने डॉ कृष्णन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, उन्होंने मामूली वेतन पाने वाले एक शिक्षक को समाज में प्रतिष्ठित स्थान दिया। ऐसे व्यक्तित्व का मिलना आज के समय में मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति गुरु सद्गुरु की बात करती है। शिक्षा और विद्या को आचरण में घोलना ही इसका मंतव्य रहा है। उन्होंने आगे कहा कि यूनीवर्सिटी के तमाम विद्यार्थियों को समाज में अनेकों पद और प्रतिष्ठा के मौके मिले, लेकिन छात्र विवि वापस आकर ही अपनी सेवा प्रदान कर रहे हैं क्योंकि उन्हें यहाँ प्यार, आत्मीयता के साथ अध्यात्म मिल रहा है। प्रणव पंडया ने कहा कि ज्ञान एक ऐसी वस्तु है जिससे अपने साथ संपूर्ण विश्व का कल्याण किया जा सकता है। ज्ञान से बड़ा कुछ नहीं हो सकता इसलिए ज्ञान का दान ही डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सच्ची श्रद्धांजलि है। अंत में उन्होंने कहा कि इतिहास में शायद ही ऐसा कोई विश्वविद्यालय रहा है जिसने इतने कम समय में देव संस्कृति जैसे कीर्तिमान हासिल किये हैं।
साभार- जीवेश नन्दन (छात्र- पत्रकारिता एवं जनसंचार)