कन्नौज। सीएम योगी आदित्यनपाथ ने आतंकी हमले में मारे गए कन्नौज निवासी मनीष और रामसागर के परिजनों को रुपये पांच-पांच लाख रुपये सहायता राशि दिए जाने के निर्देश दिए हैं। जम्मू कश्मीर के शोपियां में ग्रेनेड हमले में दोनों मजदूरों की मौत हो गयी थी।
कश्मीर में आतंकी हमले में मारे गए लोगों में दो मजदूर कन्नौज के ठठिया थाना क्षेत्र के गांव दन्नापुरवा निवासी 50 साल के रामसागर और 30 साल के मुनेश कुमार भी थे। सितंबर माह में ठेकेदार पिंटू के साथ कश्मीर के शोपियां में बागान में पेटी में सेब भराई के काम के लिए सितंबर माह में गांव से 30 लोग गए थे। इसमें 23 लोग वापस आ गए थे, जबकि मजदूरी का हिसाब न होने के कारण सात लोग वहीं रुक गए थे। इनमें रामसागर और मुनेश भी थे।
सोमवार रात करीब साढ़े 12 बजे आतंकियों ने ग्रेनेड से हमला कर दिया। इससे रामसागर और मुनेश की मौके पर ही मौत हो गई। हमले के करीब आधा घंटा पहले दोनों ने मंगलवार रात अपने परिजनों से बात की थी और सुबह चार बजे घर के लिए निकलने की सूचना दी थी।
मजदूर परिवारों की माली हालत ठीक नहीं
रामसागर और मुनेश कुमार के परिवारों की माली हालत ठीक नहीं है। रामसागर के पास एक बीघा खेत हैं और गांव में पत्नी व दो बेटों के साथ रह रहा था। बड़ी बेटी की शादी करने के बाद वह बेटों को अच्छी पढ़ाई कराना चाहता था। पति-पत्नी दोनों गांव में मजदूरी करके परिवार का पालन कर रहे थे। सितंबर माह में यहां खेतों में काम न मिलने की वजह से रामसागर ठेकेदार के साथ मजदूरी के लिए कश्मीर चले गए थे।
इसी तरह मुनेश भी परिवार की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए कमाई के लिए कश्मीर गया था। उसकी पत्नी पुष्पा ने बताया कि पति के साथ जेठ रामबाबू भी गए थे। उनके पास एक बीघा खेती है और दो बिटिया व चार साल का बेटा है। बच्चों को बेहतर शिक्षा और परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए वह कश्मीर में सेब भराई का काम करने गए थे, उन्हें वहां पर प्रति पेटी सेब भराई का 10 रुपया मिलता था।
वहीं पांच दिन पहले वापस लौटे रामकिशोर के मुताबिक, हर साल गांव के 25-30 लोग कश्मीर जाते हैं। मथुरा का एक ठेकेदार गांव के पिंटू के संपर्क में है। वही मजदूरों को कश्मीर बुलवाता है। वहां पहुंचकर सभी को अलग-अलग जगह सेब के बागान में भेजा जाता है। सेब तोड़ने से लेकर उनकी छंटाई और पैकिंग का काम मिलता है। यहां से गए मजदूरों को ज्यादातर डिब्बों में सेब पैकिंग के काम में लगाया जाता है। रोज करीब 500 की मजदूरी हो जाती है। जिस दिन काम नहीं होता, उस दिन की मजदूरी भी नहीं मिलती।
समय पर मिलती मजदूरी तो पहले होती वापसी
मुनीश और रामसागर के परिजनों का कहना है कि उन दोनों का काम वहां पूरा हो चुका था पर जिस ठेकेदार ने बुलाया था, उसने मजदूरी नहीं दी थी। पिछले तीन-चार दिन से हिसाब में टालमटोल हो रहा था। अगर पहले मजदूरी मिल जाती तो वह लोग पहले ही वापस हो जाते और सभी की जान बच जाती। सेब के बागान में काम करने दन्नापुरवा गांव से 30 लोग गए थे। 23 लोग पिछले ही दिनों वापस आ गए थे, जो बच गए वह भी वापसी करने को थे।