देहरादून। एक कहावत है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नही होता। अक्सर हमारे देश में नेताओं ने वोट बैंक के खातिर तुष्टीकरण की राजनीति कर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश की है। लेकिन इन सबके बावजूद मजहबी भेदभाव को दरकिनार कर देहरादून के आरिफ खान ने अजय की जान बचाकर हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की है।
दिल को छू लेने वाली ये खबर देहरादून से आई है। यहाँ मैक्स अस्पताल में भर्ती 20 वर्षीय अजय बिजल्वाण की हालत पिछले कुछ दिनों से बेहद नाजुक है और वह आइसीयू में है। अजय के लीवर में संक्रमण है जिसकी वजह से अजय की प्लेटलेट्स तेजी से गिर रही थीं जिसका नतीजा यह हुआ कि शनिवार सुबह पांच हजार से भी कम रह गईं। डॉक्टरों ने अजय के पिता खीमानंद बिजल्वाण को बताया यदि ए-पॉजिटिव ब्लड नहीं मिला तो अजय की जान बचाना मुश्किल हो जायेगा। खीमानंद ने लाख कोशिशें की लेकिन कोई ब्लड डोनर नहीं मिला।
आखिरकार खीमानंद के सहयोगियों ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर मदद माँगनी शुरु की। इसी बीच जब सहस्रधारा रोड निवासी आरिफ खान को वाट्सएप के माध्यम से पता चला तो उन्होंने खीमानंद को फोन किया। आरिफ ने कहा कि वह रोजे से हैं यदि डॉक्टरों को कोई दिक्कत न हो तो वह अजय को खून दे सकते हैं। आरिफ को खून देने से कोई गुरेज नही था लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि अगर खून देना है तो पहले कुछ खाना पड़ेगा, यानी आरिफ को रोजा तोड़ना होगा।
आरिफ खान बिना वक्त गंवाए अस्पताल पहुंच गए। अस्पताल पहुंचकर उन्होंने अजय को खून दिया। आरिफ के खून देने के बाद चार लोग और भी पहुंचे। आरिफ खान का कहना था कि “अगर मेरे रोजा तोड़ने से किसी की जान बच सकती है तो मैं पहले मानवधर्म निभाऊंगा। रोजा बाद में भी रखा जा सकता है” उन्होंने बड़े फक्र से कहा कि सौभाग्य की बात है कि मैं इस वक्त किसी के काम आ सका।