निःसंदेह कविताओं के बुरे दिन आ गए हैं
जो हम जैसे कवि मंच पा गए हैं
यानि पूरे भारत मे तुक्कड़ ही तुक्कड़ छा गए हैं
कविताओं के नाम पर कुछ चुटकुले ,
अश्लील संवाद , गढ़े गढ़ाये वाद – प्रतिवाद
स्त्रियों पर व्यंग्योक्तियाँ , नेताओ की निंदा
बताओ इन सब मे कविता कहाँ है जिंदा
इनकी कविता में आदर्श ,प्रेरणा, चेतना कहाँ है
इनका तो अपना अलग जहां है
कवि का मतलब पीड़ा का विष पीना और अमृत देना
इनका तो मतलब है व्हिस्की पीना और लिफाफा लेना
इस प्रकार की कविता कविता के नाम पर
कविता को भरमा रही है
स्थिति तो ये है कि इनसे तो नौटंकी भी शरमा रही है
कहने को तो है हास्य व्यंग्य के कवि मगर स्वयं में हास्यास्पद हैं , व्यंग्य हैं
कवि और कविता दोनों के नाम पर कलंक हैं ।।
रचनाकार – श्रवण शुक्ल (कानपुर)