वो एक कलम थी जो स्याही से नहीं,अश्कों से भरी हुई थी
वो एक गज़ल थी जो अल्फ़ाज़ों से नहीं, जज़्बातों से लिखी हुई थी
वो एक सवेरा थी, जो शाम से पहले ही ढ़ली हुई थी
वो एक लहर थी,जो किनारों से ही छली हुई थी..!
वो एक आखिरी साँस थी,जो सीने में रुकी हुई थी
वो एक उम्मीद थी,जो मिलन की आस में टूटी हुई थी
वो एक आँख थी जो प्यार से नहीं,इन्तज़ार से भरी हुई थी
वो ऐसी राख़ थी जो आग में नहीं, मोहब्बत में जली हुई थी..!
हां मैं एक आह थी, जो अपनी ही मुस्कुराहट के पीछे छुपी हुई थी..!
रोज़ा