किसी व्यक्ति के निर्माण का स्वर्णिम काल “यौवन काल होता है ” जिसमे वह आने वाले लम्बे जीवन के लिए शरीर, मन और आत्मा का निर्माण करता एवं विकास करता है। इसी नींव पर वह जीवन का मजबूत भवन खड़ा करता है। और उसका भोग करता है किसी भी राष्ट्र के विकास की आधारशिला और ऊर्जा उसकी युवा शक्ति होती है। यही उसका आत्मबल एवं इच्छा शक्ति होती है, इसलिए कहा गया है “वीर भोग्यावसुन्धरा।”
राष्ट्र निर्माण के ताने-बाने में यौवन के ही धागें होते है। अतः जो राष्ट्र अपनी इस ऊर्जा का संरक्षण एंव संवर्धन करता है। वह विकास के उच्च शिखर पर पहुँचता है राष्ट्र के कृषि उधोग, शिक्षा, चिकित्सा तकनीकी, राजनीति रुपी चक्के को यही युवा शक्ति ऊर्जा एंव गति प्रदान करती है। यह राष्ट्र के रगों में बहने वाला गर्म खून है। जो उसे चैतन्य और गतिशील बनाता है, भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों के विकास में इसी ऊष्मा का ताप सक्रिय है।
विश्व में जितने भी जीवन्त इतिहास हैं वे सब तरुणाई की ही रचना है “एकोहम् बहुस्याम्” के तरुण बह्म स्फुरण ने सृष्टि का सृजन किया है। संस्कृति की दुर्दशा से मार्महत श्री राम का तारुणय “निशीचर हीन करू मोहे ” का प्रण कर बैठा गीताकार ने पार्थ के तारुणय को झकझोरा तो महाभारत की विजयश्री वरेण्य हो गयी।
आत्मजयी महाबीर बन गया दयानंद, विवेकानन्द, रामतीर्थ, की तरुणाई देव-संस्कृति का उद्धधोषक बन बैठी शहीदों की तरुणाई भारत माता की परतंत्रता की जंजीरे चटका गयी, जब हम सांस्कृतिक संक्रमण के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे है। भौतिकवाद अपनी चरमसीमा पर है, ऐसे में युवा पीढ़ी दिशा हीनता, दुश्चिंतन भटकाव, दुष्प्रवृतियों, चारित्रिक पतन एंव सृजनात्मक के आभाव के जिन कुचक्रों से गुजर रहा है वे उसे धुन की तरह खोखला कर देंगे।
नशे, फैशनपरस्ती, दिखावेबाज, सिनेमाबाजी, पाश्चात्य जीवनशैली आदि में डूबते जा रहें युवाओं को आत्मबोध एवं अपने संस्कृतिक गौरव से परिचित करवाना समय की माँग है। आज समस्त राष्ट्र ही नही अपितु समस्त विश्व युवाओं से इसी आस में बैठा है, कि इस समस्या का समाधान सिर्फ युवाओं द्वारा ही संभव है। वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार हमारे देश में 35 वर्ष तक के उम्र की 65% अबादी है। यह युवा शक्ति जिधर चल पड़ेगी देश भी उधर चल पड़ेगा। अतः देश का भविष्य अब युवाओं के हाथ में है यह युवा शक्ति ही राष्ट्र शक्ति बनकर राष्ट्र को समृद्धि, उन्नति एंव प्रगति के मार्ग पर ले जायेगी।
युवा युवतियों को संगठित करना एंव उनकी गतिविधियों का सही नियोजन करना आज की प्रथम अवश्यकता है। समय की पुकार है कि प्रतिभा के धनी, संवेदना से भरे एंव श्रेष्ठ कार्यों में समय लगाने वाले संस्कारवान,संकल्पवान युवा आगे आये राष्ट्र के युवाओं की शक्ति को संगठित करे और राष्ट्र के नवनिर्माण मे अपनी पूरी शक्ति लगा दे। ओजस्वी, तेजस्वी एवं वर्चस्वी तरुणाईं के निर्माण का तथा एक सुनिश्चित कार्ययोजना में स्वयं को नियोजित करने का यह एक अलभ्य अवसर है, सामाजिक शिक्षा समाज की अवश्यकता है।
लेख- अवधेश वर्मा (स्वतंत्र पत्रकार)