क्षमा चाहता हूँ, आज़ अपनो के मध्य कुछ लिख रहा हूँ। लिखना स्वाभाविक भी लगा, आए दिन खब़रनवीशों के साथ हो रही धटनाएं प्रदेश में अपने तरह की कोई पहली और अंतिम धटना नहीं है। पूरे देश एवं प्रदेश के कलमकारों के साथ ऐसी धटनाएं आम हो गयी है। जो कर्तव्यनिष्ठा एवं ईमानदारी से कार्य करना चाहते है उन्हे हमारा समाज़ एवं हमारा तंत्र कार्य नहीं करने देना चाहते है। हमारी कलम की नोक को पैसों की ताकत से तोड़-मरोड़ दिया जाता है, हम बस बेबस और लाचार अपनी कर्तव्यनिष्ठा पर आँसू बहाते रहते है, हमारी कोई सुनने वाला नहीं है न समाज़ न सरकारें जिस समाज़ को हम विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए अपनी जान जोखिम में ड़ाल देते है वही समाज़ चन्द पैसों की खनखनाहट में हमारे खिलाफ़ खड़ा हो जाता है।
घर का भेदी लंका ढावै
आज़ हमारे समाज़ के लोग ही दुराचारियों और भ्रष्टाचारियों तथा भ्रष्ट तंत्र की मुखालिफ करते है, दोषी वह नहीं उनके संस्कार है, क्योकि उन्की परवरिश ही ऐसे संस्कार के बीच हुयी है, जहा आत्मसम्मान से ज्यादा पैसों को तवज्जों दी जाती है। अपने पत्रकार बंधु ही हमारे खिलाफ़ सुर बुलंद कर देते है, क्योकि उनको अपनी बिरादरी से कोई ताल्लुकात नहीं है, अपितु वह पैसा रुपी संस्कार को अपने जीवन में धारण करना चाहते है, किन्तु ज्ञात होना चाहिए यह रास्ता हमें नर्क की ओर ले जाता है, हमारे सांस्कृतिक, चारित्रिक एवं नैतिक बल का पतन कर देता है। जो लोग हमारी तरफ टकटकी लगाये आशा की भाव से देख रहे है, उन्के मन में ही हमारे प्रति घृणा उत्पन्न हो जायेगी।
हर माँ-बाप अपनी आने वाली पीढ़ियों से एक ही उम्मीद करेगा की सब कुछ बन जाना लेकिन कभी पत्रकार मत बनना क्योकि यह म्युजियम में जो आपके पुर्वजों की तस्वीरें लगी है इन सबकी जिम्मेदार पत्रकार नामक प्रजाति है।
यह एक पत्रकार का दर्द है उसके मन की बात है।
शायद सबको समझ में न आये।
किन्तु यह अकाट्य सत्य है।
इसलिए युवा बनो, संगठित बनों
शक्तिशाली बनो, पत्रकार बनों..!
भ्रष्टाचार आज़ राजनैतिक विमर्श का मुद्दा न होकर सामाजिक विमर्श का मुद्दा है, प्रत्येक युवा को आज़ जागरुक होने की अवश्यकता है, मेरे अनुसार सबसे ज्याद़ा विटामिन आज़कल पैसों में पाया जाता है, किन्तु सिर्फ़ पैसों के लिए अपने सामाज़िक एवं चारित्रिक विकास का पतन कर देना किसी भी प्रणाली का अंग नहीं है, कभी कहा जाता था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, किन्तु इसे भ्रष्टाचार प्रधान देश मान लिया जाएं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए क्योकि आज़ के समय में भारत की 70% आबाद़ी भ्रष्टाचार पर निर्भर है, आज़ लगभग 69% लोगों ने स्वीकार किया है, कि वह पूरी तरह भ्रष्टाचार की प्रणाली में संलिप्त है, मेरी नजर में एक बार देश को समाज़ को बचाने का अंतिम प्रयास कार्य किया जाना तदोपरांत देश को भ्रष्टाचार प्रधान देश घोषित कर देना चाहिए।
भ्रष्टाचार एक ऐसा दीमक है, जो हमारी समाजिक कोशिकाओं को धीरे-धीरे चाट कर हमारे नैतिक एवं सामाज़िक आदर्श का पतन कर हमें विमूढ़ एवं मूर्धन्य बना देगा।
अवधेश वर्मा