बहराइच। तेज़तर्रार ऑफिसर, हंसमुख स्वभाव, पुलिस वाली ड्यूटी का फर्ज हटा दें तो आम इंसान जैसी जिंदगी में बड़े ही दयालु थे मिहींपुरवा चौकी इंचार्ज अजय तिवारी जी। ट्रांसफ़र से पहले खुद के द्वारा बनवाये गये नवनिर्मित जनसुनवाई भवन की कुर्सी पर बैठना चाहते थे। लेकिन बृहस्पतिवार की देर रात साहब का फरमान आया कि तिवारी जी का ट्रांसफ़र हो गया है। ट्रांसफ़र की भनक लगते ही तिवारी साहब के चहेतों ने रातों-रात जनसुनवाई भवन के उद्घाटन की योजना बनाई और शुक्रवार सुबह अजय तिवारी जी के ड्यूटी के आखिरी दिन सीओ नानपारा की मौजूदगी में भवन का फीता कटवा दिया। इंचार्ज साहब जाते-जाते भावुक होने लगे तो अपने आंसुओं को काले चश्मे के भीतर ढक लिया। आख़िरकार अपने चहेतों को बेहतरीन यादें देकर चौकी इंचार्ज अजय तिवारी विदा हुए।
मोतीपुर थाने के दो उपनिरीक्षक मिहीपुरवा चौकी इंचार्ज अजय कुमार तिवारी व जालिमनगर चौकी इंचार्ज हरीश सिंह का ट्रांसफ़र एसपी बहराइच ने पुलिस लाइन में कर दिया। इस ट्रांसफ़र के बाद दोनों पुलिसकर्मियों का विदाई समारोह का आयोजन मिहींपुरवा व्यापार मंडल अध्यक्ष संजय सिंह, प्रधान प्रतिनिधि आनन्द वर्मा व अन्य प्रबुद्धजनों ने किया। इस समारोह में पुलिस क्षेत्राधिकारी नानपारा अरूण चन्द तथा खण्ड विकास अधिकारी मिहीपुरवा चन्दशेखर प्रसाद भी मौजूद रहे जिन्होंने इसके पूर्व नवनिर्मित जनसुनवाई भवन का उद्घाटन भी किया।
उधर तिवारी जी कस्बा छोड़कर गए तो इधर उनके चाहने वालों ने उनके जाने का दर्द लिख दिया।
उस दिन की घटना को याद करता हूं तो शर्मिंदगी का अनावरण हो जाता है। एक रात मेरे पत्रकार मित्र का फोन आया कि भाईसाहब मेरे घर चोरी हो गयी है। मैंने आनन-फानन में बिना किसी व्यक्तित्व का आकलन किये चौकी इंचार्ज अजय तिवारी को फोन लगा दिया। तिवारी जी को मिहींपुरवा चौकी में आये हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे, कभी मुलाकात नहीं हुयी थी। पत्रकारिता के रौब में आकर मैंने तिवारी साहब को बोला आप के रहते एक पत्रकार के घर कैसे चोरी हो सकती है।
तिवारी जी ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया कि भाईसाहब मैं भी आपकी तरह ही इंसान हूं कोई त्रिकालदर्शी नहीं हूं जो मुझे पता होता कि एक पत्रकार भाईसाहब के यहां चोरी होने वाली है। हमारे और आपके बीच फर्क महज़ इतना है कि मैंने वर्दी पहन रखी है और आपने कलम उठा रखी है, दोनो की सामज़िक ज़िम्मेदारी और उत्तरदायित्व समान है। दोनो का संकल्प राष्ट्र एवं समाज़ सेवा ही है। अगर मुझे पहले पता होता कि पत्रकार महोदय के यहां चोरी होने वाली है तो मैं दिन-रात आपके घर के बाहर पहरेदारी करता। क्योंकि पुलिस का संबंध आत्मिक मनुष्य से ज्याद़ा मशीनरी का है।
मेरा कर्तव्य मेरा उत्तरदायित्व सिर्फ जवाबदेही का है हम जनता के सेवक है सारी जिम्मेदारी हम पुलिसवालों की है। दिन-रात अपने परिवार माता-पिता बीबी-बच्चों को छोड़कर सिर्फ इसलिए ड्यूटी करते है कि आप सुरक्षित रह सके। फिर भी गुनाहगार हम पुलिस वाले ही है। बाकियों का कोई कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व नहीं है। हमारे प्रति आपके संवेदनाएं कभी नहीं जागेंगी क्योंकि मैंने वर्दी पहन रखी है।
सुबह हमारी मुलाकात तिवारी साहब से हुयी। बातचीत के दौरान ऐसा प्रतीत ही नहीं हुआ कि मैं किसी पुलिस अधिकारी से बात कर रहा हूं अपनापन, मृदृल स्वभाव एवं ज्ञान ही असीम पूंजी से अनुग्रहित व्यक्तित्व के सामने जाकर मैं लज्जित था आत्मग्लानि भी हो रही थी कि फोन पर मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था।जितना उत्तरदायित्व इनका है उतना हमारा भी है। उस अनौपचारिक भेंट के बाद मेरे अंदर पुलिस के प्रति जो धारणा थी सर्वथा परिवर्रित हो गयी, फिर मैंने कभी पुलिस को किसी भी घटना के लिए जिम्मेदारी भरे दृष्टिकोण से नहीं देखा। क्योंकि समाजिक तानें-बाने के अंग ये भी है और हम भी है, जितना कर्तव्य और उत्तरदायित्व इनका है उतना मेरा भी है।
तिवारी साहब सिर्फ मिहींपुरवा चौकी का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे अपितु पूरे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे। कभी-कभी व्यक्ति करना कुछ और चाहता है किन्तु परिस्थितियां उसको वैसा बना देती है कि वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता और किन्तु परिस्थितियों को अपना दास बना लेता है। तिवारी जी को आध्यात्मिक क्षेत्र से लेकर प्रत्येक क्षेत्र की गूढ़ एवं गहन ज्ञान था। बातों में इतना ओज था कि कोई भी इनकी ओर आकर्षित हो जाएं। चौकी से बाहर आने के बाद मैं सिर्फ एक दो बार मिला था साहब से क्योंकि एक लेखक होने के नाते समाज़ को पैनी नज़र से देखने का काम मेरा है।
जब भी सामने से गुजरता था तो कभी सर हमको नमन कर लेते थे तो कभी मैं अपनी श्रद्धा से उनके सामने नतमस्तक हो जाता था। लेकिन कभी-कभी इंसान किसी को अपने से जुड़ा मान लेता है तो उसका हमारे बीच से चले जाना हद्धय को व्याकुल कर देता है, दुःख भी होता है और आत्मा विदीर्ण हो जाती है।
शुक्रवार को सर के स्थानंतारण की ख़बर सुनकर गहरा आघात लगा। विदाई समारोह में पहुंच नहीं पाया इसका मुझे सर्वथा दुःख रहेगा क्योंकि मुझे इसकी कोई सूचना नहीं मिली थी। शाम को फोन किया कि सर से बात करुंगा किन्तु सर कही व्यस्त थे फोन काट दिया तब से लेकर अब तक इसी बात को लेकर बैठा हूं कि सर के पास जब भी समय होगा बात करुंगा, अपनी सहानुभूति अवश्य जताऊंगा। आपने इस क्षेत्र के लिए जो किया है सदैव अविस्मरणीय रहेगा।
एक दिन अचानक से किसी कार्यवश मिहिंपुरवा चौकी की तरफ से गुजर रहा था प्रातः सर के दर्शन पाकर उनके पास पहुंच गया। थोडी देर बात हुयी फिर सर चौकी में निर्माणाधीन गुम्बद दिखाने लगे और बातों ही बातों में बताया कि यह सब आप लोगों के सहयोग से हो रहा है। जब कोई व्यक्ति वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से जहां वह तैनात हो उस मातृभूमि की मिट्टी को अपना मान ले तो उसके प्रति अपनत्व की भावना स्वतः प्रटिस्फुरित हो जाती है।
इसलिए विदाई समारोह में भावुकता को रोक नहीं पाये आप। आशा थी कि जिस भवन को आपने बनवाया था उसमे कुछ दिन-बैठ कर जाते लेकिन यह संभव नहीं हो पाया। व्यक्ति काले दर्पण के प्रतिबिंब से अपना आवरण ढ़क रकता है, किन्तु भावनाएं स्वतः बाहर आ जाती है यह भावुकता उसी का प्रमाण है।
एक पुलिस अधिकारी होने के नाते आपने अपने कर्तव्यों का पालन किया। अपनत्व की भावना की वजह से लोगों की सहायता भी की जिसके परिणाम स्वरुप आपको बतौर ट्रान्सफर यह उपहार मिला। एक ईमानदार पुलिस अफ़सर के साथ यही होता आया है यही हमारे देश का संविधान और नियम है।
अवधेश वर्मा/ सचिन गुप्ता