वैसे तो मैं बाल्यकाल से ही ईश्वर एवं इस वाह्य जगत की सभी चर-चराचर दिव्य एवं आलौकिक सत्ता में पूर्ण विश्वास रखता हूं। जब तक राम का वनागमन नहीं हुआ था, तब राम अयोध्या के युवराज राम थे। किन्तु 14 वर्षों के वनवास से वापसी के बाद वही राम मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम कहलाएं।
कुछ बुद्धिजीवियों के कथन के अनुसार रामायण एवं राम एक काल्पनिक पात्र है, अतएव एक लेखक होने के नाते मैं मान लेता हूं, कि राम एक काल्पनिक पात्र है एवं रामायण एक काल्पनिक महाकव्य है। किन्तु मैं उन बाल्मीकी, तुलसीदास, मलय, निसिंद, मारुध को नमन् करता हूं जिन्होंने एक काल्पनिक पात्र को अपनी कल्पना मात्र से जीवंत कर दिया। एक ऐसे आदर्श व्यक्तित्व की परिभाषा गढ़ दी जिसके पथ पर अग्रसर हो जाने मात्र से ही मनुष्य का उद्धार हो जाएं।
एक ऐसे पात्र मर्यादा पुरुषोत्म प्रभु श्रीराम का पात्र गढ़ दिया जिनके नैतिक मूल्यों, आदर्श, एवं मर्यादाओं का अनुपालन मात्र से ही मनुष्य में देवत्व का उदय हो जाएं, ऐसे काल्पनिक पात्र प्रभु राम को नमन् जिन्होंने शत्रु एवं वैदेहि स्वरुपी मां कैकेयी के लिए श्राप से मुक्ति मांग ली, शबरी के जूठे बेर चख लिए। वमन राज निषाद के चरणों की रज ले ली। केवट को गले लगा दिया और उदंडी स्वभाव के वानर हनुमान को हद्धय में बसा लिया।
मंथरा जैसे कलाविनासी के चरणामृत को अपना परम सौभाग्य समझ लिया। क्या? ऐसा राम बन सकते हो आप कल्पनिक ही सही क्या? ऐसी मर्यादा का पालन कर सकते हो आप। अगर आप ऐसे पुरुषत्व का अनुपालन कर सकते है तो आप यह कहने के उत्तराधिकारी है कि रामायण एक काल्पनिक महाकव्य या ग्रंथ है। राम एक काल्पनिक पात्र है। अन्थथा 80 करोड़ हिन्दुओं की आस्था पर प्रश्नचिंह लगाने का अधिकार आपको किसी ने नहीं दिया है। उस राम की कल्पना मात्र से मानव जीवन का उद्धार हो जाएं।
मैं पुनः कहता हूं एक लेखक होने के नाते मैं मानता हूं राम एक काल्पनिक पात्र है किन्तु उसके द्वारा किए गये कार्य कदा्पि काल्पनिक नहीं हो सकता, प्रात काल उठकय रधुनाथा मात्-पिता गुरुनावै माथा। क्या? कल्पना है इसमें यदि कोई पात्र आपको अपने माता-पिता की सेवा करने का धर्म सीखाता है तो कल्पना ही सही वह पात्र आपके लिए पूज्नीय है। रधुकुल रीति सदा चली आयी प्राण जाएं पर वचन न जाई. यदि यह चौपाई आपको एक आदर्श व्यक्ति बनने सत्य एवं कर्तव्यनिष्ठा के पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है तो कल्पना ही सही आपके लिए आदर्श स्थापित कर रहा है।
यदि प्रभु श्रीराम कल्पना है तो भी राम जैसा आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति बनना ही मर्यादा पुरुषोत्म राम की परिभाषा है। एक और चौपाई की व्याख्या कुबुद्धि और दुर्बुद्धि वाले व्यक्ति करते है, जिसको आप लोगों ने समझा ही नहीं और शायद गोस्वामी तुलसीदास ने भी उस मर्यादा पुरुषोत्म राम कोसमझने में थोड़ी सी चूक कर दी।
शूद्र, ग्वार, ढ़ोल पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।
तुलसीदास के मत के अनुसार शूद्र वो लोग जो अनाचारी विवेकहीन, है जिनका अपना कोई अभिमत नहीं जो अपने पेट को शमशान समझते है निरीह मूक पशुओं की हत्या करते है वह शूद्र है। ग्वार वो लोग जो रामायण की मर्यादा और आदर्श को जानते हुए भी रामायण को काल्पनिक महाकाव्य बातते है, उनको ही तथाकथित ज्ञानी किन्तु ग्वार कहा गया है। पशु वह लोग जो परायी स्त्री एवं अपनी माताओं बहनों को ही कुदृष्टि की नजरों से देखते है। और नारी मंथरा जैसी नारी जिसने एक आदर्श पुत्र को एक आदर्श भाई को चौदह वर्षों तक वन में भटकने के लिए प्रपंच रच दिया।
तुलसीदास ने ऐसे ही लोगों के लिए यह चौपाई लिखी है, किन्तु यहां भी मर्यादा पुरुषोत्म राम की मर्यादा देखिए मंथरा जैसी प्रपंची नारी के चरणों के रज को अपने माथे पर लगा लिया। बाकी जो तथाकथित बुद्धिजीवी लोग रामायण को काल्पनिक महाकाव्य एवं प्रभु राम को काल्पनिक पात्र बताते है 80 करोड़ हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करते है, उन्को सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा जाकि रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन्ही तैसी।