रघुवीर सहाय ने बेहद प्रासंगिक लिखा है कि जब समाज टूट रहा होगा तो कुछ लोग उसे बचाने नहीं, उसमें अपना हिस्सा लेने आएंगे! इसे पढ़ने, समझने और इस पर विचार करने का वक़्त है।
महाविकास आघाडी सरकार शासित महाराष्ट्र से बेहद दर्दनाक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। जहां मुंबई के पास पालघर में महाराष्ट्र पुलिस के सिपाहियों के सामने तीन लोगों की लिंचिंग कर हत्या कर दी गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लिंचिंग में 70 साल के कल्पवृक्षगिरी महाराज, 35 साल के सुशीलगिरी महाराज और 30 साल के ड्राइवर निलेश तेलगडें की जान गई है।
खबरों की बात करें, तो घटना रात को 9:30 से 10 बजे के बीच को बताई जा रही है। डकैती, किडनी चोर, अफवाह जैसे शब्दों के साथ हत्या का केस दर्ज कर 110 लोगों को गिरफ्तार किया है। लेकिन महाराष्ट्र के डीजीपी का कोई आधिकारिक बयान किसी प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं हो पाया है। जैसा कि वीडियो में स्पष्ट है, संख्याबल कम होने की वजह से वे पुलिसकर्मी मृतकों को बचा नहीं पाए।
खैर, अहम बात यह है कि इलाके में अचानक से तो किडनी चोर की अफवाह फैली नहीं होगी। और यदि यह अफवाह कुछ सप्ताह या माह से फैली है, तो स्थानीय पुलिस ने इसे रोकने या जागरूकता फैलाने के क्या प्रयास किए। पुलिस का काम चोरी, डकैती, हत्या, लूटपाट जैसी घटनाओं पर लगाम लगाना है। उसी पुलिस के सामने अफवाह पर लोगों का इतना भरोसा हो गया कि उन्होंने पीटकर तीन लोगों को मार दिया।
वायरल वीडियो वीभत्स है। वीडियो में हत्यारों के चेहरे साफ दिख रहे हैं। सबकी पहचान हो रही है। आश्चर्यजनक है कि लिंचिंग पर लेखन उत्सव मनाने वाले बुद्धिजीवी ख़ामोश हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक की घटनाओं पर मुंबई में बैठकर ज्ञान देने वाले सेलेब्रिटी लोगों के ट्विटर और सोशल मीडिया हैंडल के बर्फ हो चुके नथुने अपने बगल की इस खबर को शायद सूंघ नहीं पाए हैं। कुछ स्थानीय मीडिया प्लेटफार्म पर यह खबर चल रही है। इसके बावजूद दिनभर हिंदू मुसलमान के रायते से चटखारे लेने वाली मेन स्ट्रीम मीडिया से यह खबर गायब है।
विगत कुछ वर्षों से लिंचिंग की हर जघन्य हत्या को बौद्धिक वर्ग और मेन स्ट्रीम मीडिया ने हिंदू, मुसलमान, दलित, सवर्ण का मिश्रण मिलाकर उत्सव में बदल दिया। लंबे लेख, घंटों की बहस, दिनभर के पैकेजों के बाद भी पीड़ित न्याय के लिए तरसते हैं, वहीं अपराधी को भीड़ नाम दिया जाता है। जबकि सबको पता है कि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता और हत्या भीड़ नहीं एक निश्चित चेहरा करता है।
देश में हर दूसरे महीने लिंचिंग हो जा रही है, और लाशों पर मीडिया और बौद्धिक गिद्ध उत्सव मनाते हैं। कुछ लोगों द्वारा की गई हिंसा को उत्सव में परिवर्तित कर दिया जाता है। फिर रोज डिबेट, लेख के नाम पर मानसिक उल्टी की जाती है। और जबतक एक घटना को हम भूलें तबतक दूसरी घटना घटित हो जाती है। विचारधारा, जातिवाद, धर्म के नशे में चूर लोग अपने आसपास घूम रहे नर पिशाचों को पहचान ही नहीं पा रहे हैं।
यही नर पिशाच आसानी से किसी को भी मौत के मुंह में धकेल देते हैं। महाराष्ट्र की घटना जघन्य है। असल कहानी तो जांच में ही पता चलेगी, जो पुलिस की ईमानदारी पर निर्भर है। अब यह देखना होगा कि दो तीन दिनों में है खबर जब दिल्ली के स्टूडियो में पहुंचेगी तब इस हत्या के विमर्श का चेहरा कैसा होगा।