इंडिया लॉक है और इसका असर अर्थव्यवस्था के साथ साथ पूरी एजुकेशन सिस्टम पर पड़ा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि “किसी विद्यार्थी की सबसे जरूरी विशेषताओं में से एक हैं प्रश्न पूछना। विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने दीजिए” लेकिन वर्तमान में क्या ई -शिक्षा के माध्यम से कितने लोग कलाम साहब की बात का अनुसरण कर रहे हैं? उत्तर हैं चुटकी भर से भी कम। विद्यार्थी ई शिक्षा व ऑनलाइन शिक्षा कह लो या लॉकडाउन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से क्लासेस बहुत चर्चा में हैं।
लॉकडाउन के समय उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग ने उत्तर प्रदेश के सभी विद्यार्थियों को ई-लेक्चर्स का लाभ उठाने का आह्वान किया व सोशल मीडिया के माध्यम से शिक्षकों से गाइडलाइंस लेने को कहा हालांकि कॉलेज व विश्वविद्यालयों द्वारा हल्के फुल्के जुगाड़ू प्रयास किये गए और किये भी जा रहे है लेकिन प्रश्न खड़ा होता हैं कि विद्यार्थी को किया ऑनलाइन पढ़ाई का लाभ मिल रहा है?
ई शिक्षा का सत्र 24×7 उपलब्ध माना जाता हैं। वर्क फ्रॉम होम के चलते ऑनलाइन “ई” शिक्षा के लिए अभी जूम एप, गूगल क्लासेज, स्काइप, यूट्यूब, फ़ेसबुक व व्हाट्सएप सहित अन्य का इस्तेमाल किया जा रहा हैं लेकिन क्या किसी सरकार या किसी प्रशासन ने सोचा कि ई शिक्षा ग्रहण करने के लिए इसके परम्परागत संसाधन जैसे एंड्राइड मोबाइल, इंटरनेट, बैट्री बेकअप, लेपटॉप इत्यादि छात्र-छात्राओं के पास हैं या नहीं और इनको चार्ज करने के लिए बिजली भी, प्राइवेट कॉलेज व यूनिवर्सिटीज के छात्र छात्राओं को तो इतनी असुविधा नही हैं क्योंकि जब यह मोटी-मोटी फ़ीस का भार वहन कर सकते है तो एंड्राइड किस चिड़िया का नाम हैं।
इनके लिए लेकिन मेरा भारत बसता हैं गांवों में 70% लोग कृषि पर निर्भर हैं और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले अधिकांश युवा और शहर में रहने वाले गरीब व मध्यम वर्ग से आये हुए युवा भी सरकारी कॉलेज व यूनिवर्सिटी में अध्ययन करते हैं और एक बड़ा तबका छात्रवृत्ति के जरिये अध्ययन करने पर मजबूर हैं, जनजातीय व आदिवासी क्षेत्रों में विद्यार्थियों के क्या हालत होंगे जिनमे अधिकांश के पास मोबाइल ही नही हैं फिर ऑनलाइन क्लासेस व शिक्षा के नाम पर ऐसे विद्यार्थियों के साथ छलावा क्यों हो रहा हैं जिनके पास एंड्राइड मोबाइल नही, किसी के पास मोबाइल हैं तो कीपैड वाला, ओर जिनके पास एंड्राइड हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क का प्रॉब्लम और ऑनलाइन क्लास होने के समय इंटरनेट डेटा उपलब्ध नही रह पाता।
कई ऐसे भी छात्र हैं जिनके पूरे परिवार में सिर्फ एक ही मोबाइल हैं, अब क्या करियेगा इन हालात में कौनसी ई शिक्षा और कौनसे ई लेक्चर्स भाई? अधूरी-जुगाड़ू तैयारी के साथ इसका उपयोग ऐसे छात्रों के साथ छल हैं , और इस समस्या हैं कई शिक्षक भी जूझ रहे है बहुत से ऐसे शिक्षक हैं जो लॉकडाउन में अपने घर से दूर है उनके साथ भी समस्या हैं कैसे अकेले लेक्चर्स को रिकॉर्ड करें, इंटरनेट की स्पीड ने तो बहुत से शिक्षकों का मनोबल तोड़ कर रखा दिया हैं, अब बात है सरकार व विश्वविद्यालय प्रशासन ने कभी भी क्या अंग्रेजी, संस्कृत व हिंदी साहित्य के शिक्षकों को कंप्यूटर व इससे जुड़े विभिन्न आयामो की ट्रेनिंग दी हैं। और जो शिक्षक ऑनलाइन क्लासेस ले रहे हैं उसका रिकॉर्ड विश्वविद्यालय को कितने दे रहे है इसकी भी समीक्षा होनी जरूरी हैं।
गेस्ट फैकल्टीज को 500 रुपये प्रति लेक्चर के दिये जाते है लेकिन एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग क्लास में ही उस गेस्ट फेकल्टी के इंटरनेट का डेटा खत्म हो रहा हैं विभिन्न नेटवर्क कंपनी इंटरनेट डेटा 1 जीबी व 1.5 जीबी 28 दिन का उपलब्ध करवाती है अब इस परिस्थिति में 500 रुपये प्रति लेक्चर्स के मिलने वाले उस शिक्षक की मनोदशा का हाल लगाया जा सकता हैं, ओर यह डेटा कई शिक्षकों का एक क्लास लेने में ही खत्म हो गया क्योंकि बिना ट्रेनिंग के सही संचालन संभव नही इससे नुकसान ही होगा। और ऑनलाइन शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों की उपस्थिति कैसे दर्ज की जाए यह भी अपने आप मे गंभीर मुद्दा हैं।
आज भी देश के अधिकांश इलाके ऐसे हैं जिनमे नेटवर्क को पकडने के लिए विद्यार्थियों व शिक्षकों को छत पर टँगे रहने के लिए मजबूर होना पड़ता हैं ऐसा लगता हैं की “4 जी” शिक्षा आज भी के जमाने मे शिक्षा आज भी मोबाइल फोन में नेटवर्क के माध्यम से उपलब्ध नही होरही नेटवर्क व इंटरनेट स्पीड का इंतजार कर रहे शिक्षक व विद्यार्थियों की हालत उस किसान की तरह प्रतीत होती हैं जो मानसून के मेगदूतो का टक-टकी लगाए इंतज़ार करते अपने खेत मे देखा जा सकता हैं।
खैर, कई ट्रेंड शिक्षक ऑनलाइन शिक्षा के जरिये उपलब्ध संसाधनों से युक्त विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं जिसमे जूम एप, ई जेड टाक्स, स्काइप,गूगल क्लासेज, यूट्यूब फेसबुक व व्हाट्सएप को जरिया बनाया है जिसमे ज़ूम से एक साथ 100 लोगो को कनेक्ट करने की सुविधा हैं लेकिन 40 मिनट से ज्यादा उपयोग पर जूम व ई जेड टाक्स चार्ज वसूल करता हैं एक्सपर्ट की माने तो यह एप बिजनेस मीटिंग के लिए उपयुक्त हैं ई शिक्षा के लिए नही ,जो कि एक तरह से मल्टीनेशनल एप्स कंपनियों को शिक्षा का व्यापारीकरण करने के लिए हमे प्लेटफार्म उपलब्ध करवा रहे है जो चिंताजनक हैं,स्काइप में वीडियो क़्वालिटी ज्यादा अच्छी नही हैं, गूगल क्लास एप में पीपीटी, पीडीफ फाइल अपलोड करने की सुविधा हैं लेकिन विद्यार्थियों से संवाद का अभाव है, फेसबुक पर लाइव व व्हाट्सएप पर वन टू वन चैट व वीडियो कॉलिंग से छात्रों को पढ़ाया जा रहा हैं।
यूट्यूब पर विद्यार्थियों से सीधा संवाद नही होता, लेक्चर्स डाउनलोड करने में ही शिक्षक का पूरा इंटरनेट डेटा खत्म हो जाता हैं, डेटा के पैसे का भुगतान सरकार करेगी या विश्वविद्यालय ? लेकिन अधिकांश शिक्षक भी संसाधनों के अभाव व हाई स्पीड इंटरनेट न मिलने से जूझ रहे हैं और आये दिन साइबर क्राइम व ठगी की चुनोतियाँ भी मुँह चिढ़ाती नजर आरही हैं।
क्या करें सरकार व विश्वविद्यालय
सरकार के साथ ऐसा पोर्टल, सॉफ्टवेयर का निर्माण करना चाहिए जो फ्री हो और उसमें विद्यार्थियों से सीधा संवाद हो सके ताकि विद्यार्थियों व शिक्षकों की जेब पर बिना वजह का भार न पड़े। आने वाला समय ऑनलाइन का ही हैं अच्छा है लॉकडाउन के चलते इस पर मंथन किया जा रहा है हाल ही में एचआरडी ने उच्च शिक्षा के लिए “स्वयं प्रभा कार्यक्रम” की शुरुआत करने पर बल दिया है और एचआरडी मंत्रालय द्वारा “भारत पढ़े ऑनलाइन” कार्यक्रम के जरिए उच्च शिक्षा व स्कूली शिक्षा के लिए सुझाव भी लिए है। अब नए भारत मे डिजिटल क्रांति की आवश्यकता सबसे ज्यादा शिक्षा के क्षेत्र में हैं। सरकारी उच्च शिक्षण संस्थानों को स्मार्ट बनाना है तो सबसे पहले ऑनलाइन शिक्षा की ट्रेनिंग शिक्षकों के साथ साथ विद्यार्थियों को भी दी जाए ताकि शिक्षण में ऑडियो, वीडियो विजवल के माध्यम से आसानी से कंटेंट उपलब्ध हो। शिक्षा अंधकार से प्रकाश की ओर जाने वाला आंदोलन हैं और इस आंदोलन को डिजिटल मजबूती की आवश्यकता वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बढ़ गई हैं।