टीले पर पहुंचकर जब मैंने अपने नजर दौड़ाई तब तो कुछ पर तो होश में होकर भी बेहोश था, पार्वती नदी का वो दहाड़े मार कर बहते पानी में मुझे इतना सुकून मिल रहा था कि मैं वही बैठ गया और बैठे बैठे कब सो गया पता नै चला। थोड़ी देर में किसी ने मुझे आवाज लगाई तो मैं उठा, चारो ओर हरियाली थी, पानी बह रहा था उस जंगल में टन-टन बजती गाय की घंटियां, उस टीले से दीखता हिमालय सूरज की रौशनी पड़ने से सोने जैसा चमक रहा था। मेरी बेहोशी मुझपर फिर से छाने लगी थी इतनी ख़ूबसूरती मैं ज़माने बाद देख रहा था। खैर मैंने खुद को संभाला और अपने कैंप में आगया।
उसके बाद रात में आग के आस पास बैठ कर कुछ मुशायरे हुए कुछ बात हुई, कुछ इश्क़ हुआ कुछ तकरार हुई। इसी के साथ उस दिन की रात भी ढल गयी अगली सुबह कैंप में उठा तो हर तरफ दरवाजा पीटने की आवाजें आ रहीं थी, बाहर निकला तो देखा कुछ लोग अजीब तरह से मटक कर चल रहे थे, कुछ भाग रहे थे और कुछ अजीब सा नाच नाच रहे थे, माजरा क्या है समझ नहीं आया फिर पता चला की आज नदी से आने वाला पाइप टूट गया है जिसकी वजह से कहीं पानी नहीं है। मैं सबके नाच और मटकती कमर का राज समझ गया।
खैर जैसे तैसे सब सुलटा चाय चली, महफ़िल जमी और फिर हम तैयार हुए ‘बिग डे’ के लिए आज हमें ट्रैकिंग पर खीरगंगा जाना था। हम तैयार हुए बढ़िया ग्रुप फोटो ली और चल पड़े बरसैनी की तरफ तकरीबन दो घंटे बाद हम पहुँचे बरसैनी डैम और वहां से कुछ खाने पीने का सामान लिए क्योंकि इसके आगे सामान महंगा हो जाता है और जल्दी मिलता भी नहीं है। हमने उतर कर गाइड लिया और कर दी चढ़ाई पहाड़ पर और वहीँ मेरी मुलाक़ात हुई शेरू से और तबसे शुरू हुई हमारी रेस।
शुरू के 20 मिनट की चढ़ाई करने के बाद मुझे तो लगा की मेरा दिल अब धकड़ के बाहर आया की तब। किसी तरह हम पहले पहुँचे कालगा गांव वहां हमने 10 मिनट आराम किआ और फिर शुरु हुआ हमारा असल सफर। मैं हर कदम के साथ उस बेसब्र दूल्हे जैसा होता जा रहा था जिसकी शादी आज शाम को हो मैं पूरा पहाड़ चढ़ने को बेताब था वहां के नज़ारे देखने को बेताब था। और मेरा सब्र हर पल टूट रहा था पर भला हो शेरू का जिसकी रेस ने मुझे मेरी सब्र की रस्सी से बांधे रखा। पूरे सफर में कहीं धूप कहीं छाओं, कभी बारिश कभी सुनहली धूप दिख रही थी, बगल से बहती पार्वती नदी की दहाड़ हर दम सुनाई पड़ रही थी।
में में करते भेड़, घंटिया बजाते घोड़े, अमिताभ बच्चन से लंबे पेड़, चीड़ के पेड़ों से अति सोंधी सोंधी महक, हर 3-4 मील पर बहता झरना, मुस्कुराते स्वागत करते पहाड़ी चेहरे, मैगी और चाय की ललचाती महक ये सब मुझे दीवाना बना रहे थे वहीँ दूसरी तरफ पैरों में पड़ते छाले, जवाब देते घुटने और अधूरी आती साँसे, लेकिन वो नज़ारे, वो खुश्बू और शेरू इन सब ने मुझे हिम्मत बँधाए रखी और मैं चलता रहा। साढ़े चार घंटे चलने के बाद मुझे मेरी मंजिल नज़र आई पर सिर्फ नज़र आई अभी उसकी चढाई और बची थी वो भी खड़ी चढ़ाई।
मैं थक चुका था पर ऊपर जाकर उन पहाड़ो को देखने के लालच के आगे सब धरा रह गया मैं उठ खड़ा हुआ और बढ़ गया आगे चलते चलते पहुंचा तो मुझे नहीं पता मेरी थकान का क्या हुआ, मैंने देखा तो बस काले पहाड़ जगह जगह बर्फ से ढके हुए और मानो मेरी ओर मुस्कुरा कर कह रहे हो आगये उस्ताद आओ मैं तुम्हे अपनी बाहों में भींच लेता हूं तुम यहाँ महफूज हो। मैं उन पहाड़ों की ओर देख कर मुस्कुरा दिया और हाथ मुँह धोया गप्पशप्प लड़ाई, और निकल पड़ा घर की ओर।
पहला भाग यहां पढ़िए http://bahraichsandesh.com/travel-to-kasol-and-sheru-by-jeevesh-nandan/