हिमाचल प्रदेश देवभूमि, जहां पर भारतीय पौराणिक घटनाओं और ऐतिहासिक स्थानों का विशेष महत्व है। आज हम यहां बात करेंगे ऐसे ही एक रहस्यमय स्थल के बारे में जो भगवान शिव का सिद्ध स्थल माना जाता है। यह स्थान हिमाचल प्रदेश के इन्दौरा जिले में स्थित है जिसे काठगढ़ मन्दिर के रूप में जाना जाता है। यह हिमाचल प्रदेश का अति प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन यह जिला पंजाब राज्य के साथ सटा हुआ है जिस कारण से इस मन्दिर के सबसे करीबी शहर पठानकोट ही है। इसलिए इस मन्दिर में उतने ही श्रद्धालु पंजाब से भी आते हैं जितने हिमाचल प्रदेश से यहां आते हैं। यह स्थान ब्यास नदी के किनारे स्थित है जो नदी कुछ स्थानों पर पंजाब हिमाचल सीमा को बांटने का कार्य करती है।
यहां पर विराजमान शिवलिंग दो भागों में विभाजित है जिसमें छोटा भाग मां गौरी का प्रतीक है और दूसरा भाग भगवान सदाशिव का, इस दोनों भागों के बीच जो अंतर है वह मौसम के अनुसार परिवर्तित होता रहता है, शिवरात्रि के दिन शिवलिंग के दोनों हिस्से जुडकर एक हो जाते हैं। इस शिवलिंग के आकार को यदि नापा जाए तो यह 6 फीट लंबा है और इसकी गोलाई भूमि में 5 फीट की है। इस प्रकार का ज्योर्तिलिंग आपने आप में अनूठा है और इस प्रकार का शिवलिंग या ज्योर्तिलिंग संसार में अन्यत्र कहीं नहीं है। यह शिवलिंग लकड़ी के बने हुआ हैं और दो हिस्सों में विभाजित हैं और दैवी चमत्कार के साथ ये दोनों हिस्से शिवरात्रि के दिन अपने आप एक हो जाते हैं। इस मंदिर की रूप मुगल काल के किलों की तरह निर्मित है, मन्दिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने प्राचीन वट वृक्ष है।
मन्दिर का इतिहास शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार इस प्रकार है…
संसार की रचना के समय जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई तब उन दोनों के बीच में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि हम दोनों में से श्रेष्ठ कौन है? तब इस बहस ने कुछ समय बाद युद्ध का रूप ले लिया। तब संसार में इस बात का भय प्रकट हो गया कि पालनकर्ता और रचयिता स्वयं लड़ने लगे तो इस संसार का क्या होगा। तब इस भयानक युद्ध से होने वाले महाप्रलय से आशंकित होकर भगवान शिव ने दोनों के बीच में एक बहुत विशाल स्तंभाकार ज्योर्तिलिंग के रूप में जन्म लिया और दोनों को शांत किया। युद्ध शांत करने के उद्देश्य से भगवान शिव ने जो रूप धारण किया था वही रूप ज्योर्तिमय लिंग के रूप में आज यहां पर काठगढ़ महादेव के रूप में विद्यमान हैं।
कुछ ऐतिहासिक घटनाएं जो काठगढ़ मन्दिर से जुडी हैं।
• भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत जब अपने नैनिहाल कैकय देश (वर्तमान कश्मीर) जाते थे, तब वे यहां अपना पड़ाव डालकर यहां पर इस ज्योर्तिलिंग की पूजा करने के पश्चात ही आगे बढ़ते थे।
• विश्वविजेता कहे जाने वाला सिकन्दर भी जब पंजाब क्षेत्र में नही घुस पाया था तब उसने अपनी सेना का उत्साह कम देखकर अपने अन्तिम समय में कुछ समय ब्यास नदी के किनारे रूककर इसी स्थान से वापिस चला गया था।
• यह शिवलिंग काफी समय तक विलुप्त हो गया था, आधुनिक काल के दौर में यह शिवलिंग पुनः तत्कालीन राजा के राज्य में गुजरों के द्वारा पुनः जानकारी में आया, ऐसी मान्यता है। उस समय इसकी श्रावण मास में विधिवत पूजा की गई थी।
• राजा के द्वारा धर्म वेत्ताओं की सहायता से पूजा के बाद यह शिवलिंग आदम कद बढ़ गया और आज भी यह उसी अवस्था में खड़ा है।
• हिन्दू और सिख समानता के प्रतीक शेर ऐ पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी से बाद में इस शिवलिंग पर मन्दिर बनाकर विधिवत इसकी पूजा अर्चना की।
यह स्थान समुद्र तल से 305 मीटर उंचाई पर है। यह पठानकोट शहर से 26 किमी दूरी पर स्थित है। यहां पर शिव मन्दिर के अलावा और भी दर्शनीय स्थल हैं जैसे संतों की समाधी स्थल, हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का परिचायक स्मारक एवं ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित निर्माणाधीन सार्वजनिक पार्क। यहां पर प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, कोई अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए महाकाल के पास अरदास लेकर आता है तो कोई पर्यटन के उद्देश्य से यहां मनोरंजन के लिए आता है।
यह स्थान प्राय सभी मौसन में उपयुक्त है और यह मंदिर पूरे साल सामान्य समय पर (प्रातः 6 बजे से सायं 9 बजे तक) खुला रहता है। परंतु यहां पर श्रावण मास के महीने में सामान्य से अधिक भीड़ रहती है। शिवरात्री के समय जब शिवलिंग के दोनों हिस्से एक हो जाते हैं, तब इस दिव्य ज्योर्तिलिंग के दर्शन हेतु दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। इस समय यहां पर सबसे अधिक भीड होती है। यहां पर श्रद्धालुओं और यात्रियों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था भी है। यहां पर लंगर का समय दोपहर 12ः30 बजे से 3 बजे तक प्रतिदिन होता है।
आप जब भी कहीं पठाकोट के रास्ते से डलहौजी की ओर या जम्मू की ओर जा रहे हों तब अपनी समयावधि को ध्यान में रखकर सफर करें और यहां इस दिव्य महाकाल के दर्शन करना न भूलें। यहां पर एक अद्भुत प्रकार की दिव्य आभा है जो भक्तों में दिव्य ओज का प्रसार करती है। अधिक जानकारी के लिए आप http://www.kathgarhmandir.in वेबसाईट पर जा सकते हैं।
लेखक- संतोष पौडियाल