दीपावली के दो दिन पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से दीपावली के त्यौहार की शुरुआत होती है।
क्या है धनतेरस-: हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन भगवान धनवन्तरि कलश में अमृत लेकर प्रकट हुए थे। इसी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन नयें बर्तन और सोनें-चाँदी के आभूषण खरीदें जाते है इस दिन आभूषण एवं बर्तन की खरीददारी से धन में 13 गुना वृद्धि होती है। इस दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। कार्तिक माह की कृष्ण की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इसे धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है।
क्या है मान्यता-: इस दिन किसी भी प्रकार का उधार व्यापार नहीं होता है। क्योकि ऐसा करने पर साल भर लक्ष्मी रुठ जाती है और व्यापार में वृद्धि नहीं होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन उधार व्यापार करने से साल भर उधार का कारोबार ही फलता-फूलता है।
क्या करना चाहिए-: आज के दिन लोग अपने धरों में भगवान धनवन्तरि और माँ लक्ष्मी की पूजा करते है, साथ ही धरों में दीप जला कर धन्य-धान्य से परिपूर्ण एवं साल भर सुख-समृधि की कामना की जाती है।
जानें किन चीजों को खरीदने से प्रसन्न होती है माँ लक्ष्मी-:
माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए ये 4 चीजे अवश्य खरीदें
१. चाँदी का सिक्का, बर्तन
२. धनिया इसको धन का प्रतीक माना जाता है
३. महिलाओं के लिए लाल वस्त्र
४. पीतल का कलश
यदि आप ज्यादा वजन चीज खरीदनें में सक्षम नही है तो एक चम्मच अवश्य खरीदें।
क्या न खरीदे-: आज के दिन एल्युमिनीयम और काँच के वस्तु न खरीदे क्यूंकि यह राहु के प्रतीक माने जाते हैं।
जाने वस्तुओं को खरीदने और पूजा का मुहुर्त-:
धनतेरस पर पूजा का समय – 19:32 अपराह्न से 20:18 बजे तक
प्रदोष काल –17:49 बजे से 20:18 अपराह्न
वृषभ काल – 19:32 अपराह्न से 21:33 बजे तक
5 नवम्बर, 2019 को त्रयोदशी तिथि सुबह 12 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी।
6 नवम्बर 2019 को त्रयोदशी तिथि सुबह 8 बजे समाप्तक होगी।
सूर्योदय के बाद शुरू होने वाले प्रदोषकाल के दौरान लक्ष्मी पूजा की जानी चाहिए।
जाने योग्य महत्वपूर्ण बात-:
आज के दिन को भारत सरकार ने राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रुप में घोषित किया है।
भगवान धन्वन्तरि के बारें में-:
पंचम वेद के रुप में जाने वाले ‘आयुर्वेद के आदिदेव भगवान ‘धन्वंन्तरि’ को क्षीरसागर के मंधन से उत्पन्न चौदह रत्नों में से एक माना जाता है, जिनका अवतरण इस अनमोल जीवन, आरोग्य स्वास्थ्य ज्ञान और चिकित्सा से भरे हुए अमृत-कलश को लेकर हुआ।
(वैदिक सनातन धर्म में भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों में भगवान धन्वंतरि जी 12वें अवतार हैं।)
देवासुर संग्राम में घायल देवों का उपचार भगवान धन्वन्तरि के द्वारा ही किया गया। भगवान धन्वन्तरि विश्व के आरोग्य एवं कल्याण के लिए विश्व में बार-बार अवतरित हुए।
इस तरह भगवान धन्वन्तरि के प्रादुर्भाव के साथ ही सनातन, सार्थक एवं शाश्वत आयुर्वेद भी अवतरित हुआ, जिसने अपने उत्पत्ति काल से आज तक जन – जन के स्वास्थ्य एवं संस्कृति का रक्षण किया है।
वर्तमान काल में आयुर्वेद के उपदेश उतने ही पुण्य एवं शाश्वत हैं, जितने की प्रकृति के अपने नियम।
भगवान धन्वन्तरि ने आयुर्वेद को आठ अंगों में विभाजित किया जिससे आयुर्वेद की विषयवस्तु सरल, सुलभ एवं जनोपयोगी हुई।
आज भगवान धन्वन्तरि जी की जयंती एवं विशेष पूजा-अर्चना, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी अर्थात धनतेरस के दिन मनाते हुए, प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रथम सुख निरोगी काया एवं श्री-समृद्धि की कामना की जाती है।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि से प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें।
इन्होंने आयुर्वेद शास्त्र का उपदेश विश्वामित्र जी के पुत्र सुश्रुत जी को दिया। इस ज्ञान को अश्विनी कुमार तथा चरक आदि ऋषियों ने आगे बढ़ाया। आयुर्वेद मानसिक व शारीरिक रूप से पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने का ज्ञान प्रदान करता है।
आधुनिक जीवन में मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त है, उसकी कार्यक्षमता भी कम हो रही है लेकिन प्राचीन काल में ऋषियों-मुनियों ने आयुर्वेद के ज्ञान से अपने शरीर को स्वस्थ एवं निरोधी रखा, सर्वभय व सर्व रोगनाशक व आरोग्य देव भगवान धन्वंतरि स्वास्थ्य के अधिष्ठाता होने से विश्व वैद्य हैं।
इसी दिन धन, वैभव, सुख-समृद्धि, वैभव का पर्व ‘धनतेरस’ मनाया जाता है।
संसार का सबसे बड़ा धन है निरोगी काया, भौतिक सुख साथ होगा तभी समृद्धि और वैभव को भोग पाएंगे।
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
अवधेश वर्मा।