ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता।
आता नहीं समझ करना क्या है, जीवन को किस ओर लेकर जाना है, यू ही दर बदर फिरता रहूं या सही वक़्त आने तक बैठ कर इंतज़ार करू। देख रहा हूं चारो तरफ, सबको मिल चुका है रास्ता, चलते जा रहे है कुछ, तो कुछ पहुंच भी चुके होंगे। बेखबर वक़्त की डगर से, बेपरवाह जीवन की कठिनाईयों से, मैं खोया हूं ना जाने कहां। ऐ ज़िन्दगी कुछ तो बता।
आता नहीं समझ, कर क्या रहा हूं मैं अब तक, क्यों नहीं मिल रहा मुझे मंज़िल का पता। ऐ ज़िंदगी कुछ तो बता, अब और ना यू तड़पा, थका नहीं हूं मैं तेरी कठिनाइयों से, बस मन भर गया है, रोज़ एक ही काम करते करते। नहीं बना हूं मैं इन सब के लिए, तू एक बार हाल मेरे दिल का पूछ के तो बता। ऐ ज़िन्दगी कुछ तो बता। तू नाराज़ बेशक हो मुझसे, मैं तेरी नाराज़गी पल में दूर कर दूंगा। जरा आने तो दे वक़्त मेरा, मैं साबित खुद को कर दूंगा। जल रहा हूं मैं खुद की ही ज्वाला में, और कब तक यूं ही जलता रहूंगा, अब ना मुझको और जला।
ऐ ज़िंदगी अब तो कुछ बता।
Mohit Sharma..
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